Saturday, October 18, 2014

हिंदी में कुछ दिक्कत तो है!

ब्लॉग अड्डा की तरफ से एक मेल मेरे पास आया। इस मेल में लिखा है कि अगर आप इस प्रतियोगिता में शामिल होते हैं तो आपके INK Conference में नि:शुल्क प्रवेश मिलेगा। मुंबई में होने वाले इस कार्यक्रम के प्रवेश यानी Pass की कीमत 50 हजार रुपये बताई गई है। मुझे लगा मैं भी इसमें शामिल होता हूं। हालांकि, जिस तरह के लोग इसमें दिख रहे थे। उससे मेरी आशंका गहरा गई थी कि यहां भी हिंदी वाले अछूत ही होंगे। उनको प्रवेश नहीं मिलेगा। फिर भी मैंने हिम्मत करके ब्लॉगअड्डा के पन्ने पर जाकर ये सवाल पूछा कि क्या ये हिंदी ब्लॉगरों के लिए भी है। कई घंटे तक वो ब्लॉगअड्डा संचालकों की अनुमति का इंतजार करता रहा। फिर मेरा प्रश्न ही गायब हो गया। मतलब डिलीट कर दिया गया। वजह भी बड़ी साफ थी कि दो देशों के ब्लॉगरों को साथ मिलकर एक ब्लॉगपोस्ट तैयार करनी थी। और देश भले ही भदेस हिंदीभाषी को प्रधानमंत्री बना दे लेकिन, ये बाजार कहां मानने वाला है कि भारत में सिर्फ हिंदी में ब्लॉगिंग करने वाला विदेश के किसी ब्लॉगर से संवाद भी बना सकता है। इसलिए उन्होंने मेरे प्रश्न को डिलीट भी कर दिया कि उनका पन्ना हिंदी में लिखा बात से गंदा न दिखे।

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ठीक है कि ये उनका विशेषाधिकार है। लेकिन, भाई फिर किसी हैसियत से ब्लॉगअड्डा ने हम हिंदी ब्लॉगरों को अपने साथ जोड़ा और ऊपर लिखी मेल मेरे इनबॉक्स में ठेल दी। इस सबको देखकर मैं ये समझ पा रहा हूं कि
कुछ दिक्कत तो है। मार्क जुकरबर्ग भारत आए और हिंदी ब्लॉगरों, पत्रकारों से दूर रहे। हिंदी ब्लॉगिंग का उत्साह अंग्रेजी ब्लॉगिंग से कई गुना आगे हैं। लेकिन, हिंदी ब्लॉगिंग के ज्यादातर मंच, संकलक कुछ ऐसा नहीं कर पाए, जिससे बाजार उनके पीछे चले। सभा, बहस तक ही मामला रहा। वो भी बड़ी मुश्किल से। अंग्रेजी में वही मंच, संकलक बड़ा आगे तक बढ़ गए। अंग्रेजी ब्लॉगरों के नाम लिखकर चिढ़ाती हुई मेल भी इनबॉक्स में आ जाती है कि फलां ब्लॉगर $1000 से ज्यादा महीने में कमा रहे हैं। हिंदी ब्लॉगर सभा, संगोष्ठी में फाइल, कलम बटोरकर आ जाएं। इत्ते में ही खुश। कुछ दिक्कत तो है। सुलझ सके तो सुलझाइए।

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