Saturday, October 18, 2014

लाइफ इन अ मेट्रो!

मातृशक्ति

आमतौर पर ये धारणा है कि सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं के लिए बड़ी मुश्किल है। उन्हें दुनिया भर की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उनके साथ हर तरह की बद्तमीजी होती है। लेकिन, मेट्रो में उस दिन मुझे दूसरा अनुभव हुआ। एक अधेड़ उम्र दंपति नोएडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन से चढ़े। सीटें भर गईं थीं। लेकिन, अधेड़ उम्र महिला ने दो लोगों को थोड़ा-थोड़ा समेटा और अपने लिए जगह बना ली। महिला निश्चिंत थी। दोनों पुरुष सिमटे बैठे थे। अक्षरधाम स्टेशन पर उनके पति महोदय को मेरे बगल सीट मिल गई। पति को सीट मिलते ही वो अधेड़ उम्र महिला बिजली की गति से मेरे और अपने पति के बीच में जगह बनाने के लिए उपस्थित थी। मुझसे अपना शारीरिक उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं हुआ। मैं तुरंत उठ खड़ा हुआ। पति ने भी खड़े होकर मुझे बैठने को कहा। मैंने जवाब में खड़े रहना ही उचित समझा। पत्नी ने पति का हाथ पकड़ा और लगभग जबरदस्ती बैठा लिया।


बुजुर्ग

दो बुजुर्ग मेट्रो का दरवाजा खुलते ही मेट्रो में वृद्ध एवं विकलांगों के लिए लिखी वाली सीट की ओर दौड़े। एक ने कम उम्र व्यक्ति को उठाकर अपने लिए जगह बना ली। दूसरा बुजुर्ग ही बैठा था। लेकिन, दूसरे बुजुर्ग अतिसाहसी थे। वो दूसरी तरफ गए। और अनारक्षित सीट पर बैठे एक नौजवान को उठाकर अपने लिए सीट आरक्षित कर ली। जबरी।


किस्मत पर भरोसा
वो बुजुर्ग किसी से बात कर रहा था। फोन पर कह रहा था। व्हाट्सएप चेक किया। उधर से जो जवाब आया हो। बुजुर्ग ने कहा। अरे मैंने ग्रुप बना लिया है। रोज रात को एक संदेश भेज देता हूं। अच्छा लगे तो बहुत अच्छा। सिर्फ तीन लोग ही हैं उस ग्रुप में। और मैंने तो फेसबुक अकाउंट भी बना लिया है। मजा आ रहा है। जिंदगी है। उसमें सुबह भी होगी, दोपहर भी, शाम भी और रात भी। तो ऐसे ही जिंदगी चल रही है। मुझे रिटायर हुए 9 साल हुए। मैं अपनी जिंदगी शुरू हुए 9 साल ही मानता हूं। और जवानी में तो नहीं माना लेकिन, अब किस्मत पर भी थोड़ा बहुत भरोसा करने लगा हूं। और जोर से हा हा हा ...

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