Tuesday, January 21, 2014

तानाशाही विचारधारा के हैं अरविंद केजरीवाल!


अरविंद केजरीवाल मुझे बहुत लुभाते थे। गलत कह रहा हूं सच बात ये है कि अभी भी बहुत लुभाते हैं। बिना किसी बहस के अरविंद केजरीवाल का खुद में भरोसा गजब है। और ऐसा ही भरोसा हम  जैसे लोगों को भी अरविंद में दिखता है लेकिन, उससे भी ज्यादा भरोसा मुझे इस तर्क में दिखता है कि केजरीवाल कांग्रेस का विकल्प हो सकते हैं। या ये कहें कि दिखता था। लेकिन, अब उससे भी ज्यादा भरोसा इस तर्क में कि कांग्रेस की मदद ये मजबूती से करेंगे। ठंडी की एक रात में प्रदर्शन के दौरान जागने के बाद अरविंद केजरीवाल के ज्ञान चक्षु खुल गए हैं। पता नहीं ये दिव्य ज्ञान बीती रात ही हुआ या उससे पहले से ही है। ये दिव्य ज्ञान ये है कि आधा मीडिया नरेंद्र मोदी के साथ है और आधा राहुल गांधी के साथ। शोले फिल्म में अंग्रेजों के जमाने के जेलर असरानी की वो बात मेरे दिमाग में आ गई कि आधे दाएं जाओ, आधे बाएं जाओ- बाकी मेरे पीछे आओ। वो पिक्चर थी। कॉमेडी थी। लेकिन, अरविंद केजरीवाल तो मुख्यमंत्री हैं और प्रधानमंत्री बनने का सपना भी देखने लगे हैं। वो क्यों कॉमेडी कर रहे हैं। मीडिया के बारे में बार-बार बात होती है और ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया पर और निजी बातचीत में अकसर राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के समर्थक भी ये आरोप लगाते रहते हैं कि मीडिया उनके खिलाफ काम कर रहा है। देश की और राज्य की सरकारें भी अकसर ये दबे-छिपे कहती रहती हैं कि मीडिया उनकी सरकार अस्थिर करने में लगा हुआ है। लेकिन, श्रीमान अरविंद केजरीवाल का ये बयान कि आधा मीडिया नरेंद्र मोदी का है और आधा राहुल गांधी का थोड़ा चौकाने वाला है। मेरी जानकारी में तो इस तरह से मीडिया को बांटकर आरोप तो कभी खुद नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी ने भी नहीं लगाया। जबकि, ये किसी से छिपी बात तो है नहीं कि मीडिया खासकर टीवी मीडिया नरेंद्र मोदी की कितनी विरोधी रिपोर्ट पेश करता रहा है। 12 सालों से अगर 2002 जिंदा है तो क्या लगता है कि तीस्ता सीतलवाड़ जैसी एनजीओ कार्यकर्ता या कुछ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मोदी विरोध करने वालों की इतनी ताकत है। दरअसल गुजरात दंगा अगर नरेंद्र मोदी का पीछा नहीं छोड़ रहा है तो इसके पीछे मीडिया का मूलत: निष्पक्ष स्वभाव ही है। वही मीडिया नरेंद्र मोदी के विकास के एजेंडे की क्या जमकर तारीफ करता है। वही टीवी चैनल जो गुजरात दंगों पर गंदे से गंदे विश्लेषण के साथ रिपोर्ट चलाते हैं वही टीवी चैनल विकास के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी को महानतम विश्लेषणों से विभूषित करते हैं। मीडिया यही है। क्या कभी नरेंद्र मोदी ने ये कहा कि पूरे देश का मीडिया सिर्फ राहुल गांधी का है।


राहुल गांधी को भी मीडिया ने क्या-क्या नहीं कहा। अपनी ही बहन प्रियंका के सामने हर मौके पर ऐसे साबित किया कि राहुल तो सचमुच गली में खेलने वाला बच्चा है और प्रियंका गांधी राजनीति की चतुर खिलाड़ी। जबकि, सच्चाई क्या ये नहीं है कि इंदिरा गांधी की छवि दिखती है, राहुल, सोनिया की चुनावी प्रबंधक हैं इसके अलावा तीसरी सीट पर कभी प्रियंका जिताऊ फैक्टर नहीं साबित हुई हैं। लेकिन, हर कोशिश के बावजूद मीडिया में राहुल गांधी की कड़ी परीक्षा हर रोज होती रहती है। फिर भी क्या कभी राहुल गांधी ने ये कहा कि सारा मीडिया सिर्फ नरेंद्र मोदी का है। दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने में अरविंद केजरीवाल की जबरदस्त मदद पिछले करीब ढाई सालों से टीवी मीडिया में सबसे ज्यादा कवरेज ने की है। इससे भला कौन इंकार कर सकता है। लेकिन, इसके बावजूद मीडिया को इस तरह से खांचे में बांटकर देखने का साहस कौन राजनेता करता है। कार्यकर्ता और छुटभैये नेता कांग्रेस, बीजेपी या किसी पार्टी के हों मीडिया को अपनी सरकार, नेता के खिलाफ लिखने-बोलने पर गाली देते ही हैं। और ये होगा ही। लेकिन, सीधे-सीधे किसी पार्टी का शीर्ष नेता सारे ही मीडिया को विरोधी बता दे, आरोप लगा दे ऐसा कम ही होता है। किसी एक संपादक, अखबार, किसी एक बहस में किसी एक एंकर पर आरोप लगाना होता रहा है। लेकिन, अरविंद क्रांतिकारी हैं, अराजक हैं, खुद को वो ऐसे ही परिभाषित किया जाना पसंद करते हैं। इसलिए अरविंद ने पूरे मीडिया को आधा-आधा नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के पाले में भेज दिया।

श्रीमान अरविंद केजरीवाल "आआपा" की सफलता में मीडिया का कितना योगदान है ये आपको अच्छे से पता है। नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी के लिए इतना योगदान नहीं दिया। मोदी, राहुल पर भी मीडिया जमकर सवाल उठाता है लेकिन इन दोनों ने भी कभी मीडिया पर आरोप नहीं लगाया। आपके विचार तो अजब उत्पाती हैं कि आप पर सवाल उठाने का हक भी मीडिया से छीन लिया जाए। तानाशाही विचारों के असल प्रवर्तक दिख रहे हैं आप। लेकिन, आपकी तानाशाही "आआपा" में जुड़ने वालों पर चल सकती है मीडिया पर नहीं इसीलिए आपको लगता है कि सारा मीडिया अब आपका विरोधी है। अरविंद केजरीवाल खुद को बुद्धि का भंडार समझते हैं लेकिन, ये क्यों नहीं समझ पाते कि मीडिया मोदी, राहुल का होता तो ठंडी में, बारिश में भीगते, पुलिस की लाठियों के बीच से "आआपा" कार्यकर्ताओं को पिटता क्यों दिखाता? मीडिया मूलत: कितना निष्पक्ष है इसका अंदाजा इसी से लगाइए कि श्रीमान अरविंद केजरीवाल ने सुबह ही आधा-आधा मीडिया मोदी, राहुल का बता दिया फिर भी पूरा मीडिया रेल भवन पर रहा। अरविंद केजरीवाल गलतबयानी में आप माहिर हैं। ये तो अच्छे से समझते हैं कि मीडिया न मोदी का है न राहुल का। हां "आआपा" का भी नहीं इसीलिए मिर्ची लग रही है। और सबसे आखिर में अगर एकाध टीवी संपादकों के पार्टी में जाने से सारा मीडिया किसी पार्टी का हो जाता तो आशुतोष से बहुत बड़े-बड़े संपादक पहले से कांग्रेस-बीजेपी में हैं। श्रीमान अरविंद केजरीवाल गलतफहमी से बाहर निकलिए। लोग बार-बार ये कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी की विचार धारा क्या है। अब मैं पक्के तौर पर कह सकता हूं अरविंद तानाशाही विचारधारा के असल वाहक हैं।

3 comments:

  1. जिस सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उन्हें आँखों पर बिठाया वही उनका उपहास करने लगी है। मुद्दा विचारणीय होने के बावजूद आज चर्चा मुद्दे पर कम हो रही है और उनके छूठे दंभ, अनावश्यक आक्रामकता, और पदीय दायित्वों से भटक जाने की अधिक हो रही है। जिन लोगों की छाती पर मूंग दलते हुए उनका काफिला सत्ता के गलियारों तक पहुँचकर कुर्सी पर कब्जा जमा बैठा वे ही इस तमाशे को देखकर जैसे दुबारा जिन्दा हो गये हैं। डॉ. हर्षवर्धन की दमित इच्छा भी मानो अब कुलाँचे मारने लगी है। आम आदमी पार्टी की विरुदावली गाने वाले अब इसका उपसंहार लिखने बैठ गये हैं। यह उन करोड़ों लोगों के लिए निराशा का क्षण है जिन्होंने इस बदलाव की बयार से बहुत उम्मीदें लगा ली थीं। कदाचित्‌ मैं भी उनमें सम्मिलित हूँ।

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  2. आआपा से उम्मीद पाले बैठे लोगों की लम्बी फेहरिस्त में अपना नाम भी शुमार था| अब लगता है कि जिस हल्केपन के साथ अराजकतावाद जैसी गुरुतर विचारधारा को डील किया जा रहा है, वह बेहद दुखद है| अरविंद को समझना चाहिए, कि लोकतंत्र में ब्लैक एंड ह्वाईट सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता |

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