Thursday, November 28, 2013

सरकार महंगाई बचत खा रही है!




एक परिचित के यहां शाम के खाने पर गया था वो एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करते हैं। चर्चा शुरू हुई तो उन्होंने अपना दुख दर्द बताना शुरू कर दिया कि किस तरह उनकी इंडस्ट्री में ग्रोथ नहीं रह गई है। इस चर्चा के बाद मेरा ये साहस ही नहीं हुआ कि मीडिया इंडस्ट्री में आए ठहराव या उल्टी ग्रोथ यानी मिल रही तनख्वाह में गिरावट की चर्चा कर सकूं। लेकिन, ये हाल सिर्फ मीडिया या आईटी इंडस्ट्री का नहीं है। ज्यादा क्षेत्रों में ऐसा ही माहौल है। 2008 की मंदी के बाद से अब तक भारतीय अर्थव्यवस्था उबर नहीं सकी है। दरअसल 2008 की मंदी के समय जब अमेरिका और यूरोप धराशायी हो रहे थे तब भी भारतीय काम भर की खरीदारी कर रहे थे। त्यौहार मना रहे थे। नई गाड़ियां (कार-मोटरसाइकिल) खरीद रहे थे और नए नए कपड़े भी। उस समय भारतीयों को एक शब्द सुनने को मिला था जिससे समझ में आया कि आखिर दुनिया के बड़े बैंकों और भारत के बैंकों में मूल रूप से अंतर क्या है। वो अंतर था पारंपरिक बैंकिंग सिस्टम और इनवेस्टमेंट बैंकिंग सिस्टम का। भारत पूरी तरह से पारंपरिक बैंकिंग सिस्टम पर चलता है। इसका मतलब ये कि बैंक अपनी बचत को कुछ तय ब्याज पर रखने की जगह है और कभी आपकी जरूरत पड़े तो बैंक बचत पर मिलने वाले ब्याज से कुछ ज्यादा ब्याज पर आपको घर, गाड़ी और दूसरी छोटी-मोटी जरुरतों के लिए कर्ज देता है। जबकि, दुनिया में प्रचलित इनवेस्टमेंट बैंकिंग सिस्टम ये कहता है कि किसी को उसकी हैसियत से कुई गुना ज्यादा कर्ज देना और उस पर मुनाफे के तौर पर तगड़ा ब्याज कमाना। उस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बड़े बैंकरों की तरफ से भी ये बयान आए थे कि भारत दुनिया की मंदी के दौर में भी अगर ठीक रह गया तो उसकी सबसे बड़ी वजह भारत के लोगों की बचत करने की आदत थी। यानी सच बात ये थी कि सरकार की नीतियों ने नहीं लोगों की आदतों ने इस देश को 2008 की भयानक मंदी से लड़ने की ताकत दी थी।

मंदी में भारतीयों की बचत की आदत से देश को कैसे ताकत मिली थी इसको समझिए। 2008 की मंदी के साल यानी वित्तीय वर्ष 2007-08 की बात करें तो भारतीयों की बचत की आदत चरम पर थी। 2007-08 में भारत घरेलू बचत दर 36.9 प्रतिशत थी। और जब 2008 की मंदी आई नौकरियां गईं। जिनकी नौकरियां बचीं भीं उन्हें कम तनख्वाह पर समझौते करने पड़े तो यही बचत काम आई। लेकिन, अब डराने वाले आंकड़े आ रहे हैं। बचत बढ़ाने का जुगाड़ भारतीयों के पास इसलिए नहीं है क्योंकि, जेब में आने वाली रकम बढ़ी नहीं और उस पर महंगाई लगातार बढ़ी है। पिछले करीब तीन सालों से अगर खाने पीने के सामानों की महंगाई दर देखें तो ये औसत दस प्रतिशत के ऊपर रही है। अगर दूसरे जरूरी सामानों की भी बात करें तो ये महंगाई दर औसतन आठ प्रतिशत के ऊपर ही रही है। अब जरा समझिए कि महंगाई कैसे हमारी आपकी बचत खा रही है। 2007-08 में 36.9 प्रतिशत घरेलू बचत दर वाला भारत 2012 आते-आते तेजी से गिरकर 30.8 प्रतिशत ही बचा पा रहा था। ऐसा नहीं कि भारतीय अचानक बड़े शाहखर्च हो गए या फिर उनकी आदतें यूरोप और अमेरिका के लोगों जैसी हो गईं। दरअसल सच्चाई ये है कि भारतीय की बचत उनकी जरूरतों की महंगाई की भेंट चढ़ गई। 2012 में भारतीयों की बचत पिछले दस सालों में सबसे कम रह गई। क्योंकि, प्रति व्यक्ति आय वित्तीय वर्ष 2012 में सही मायने में सिर्फ 4.7 प्रतिशत ही बढ़ी है जो करीब अड़तीस हजार रुपये होती है। जबकि, 2011 के वित्तीय वर्ष में प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की दर 7.2 प्रतिशत थी। मतलब 2008 की मंदी के बाद 2011 में लोगों की कमाई थोड़ी बेहतर हुई लेकिन, 2012 आते आते फिर वही ढाक के तीन पात।

और ऐसा नहीं है कि ये सारी बातें सिर्फ नौकरीपेशा लोगों के संदर्भ में हैं दरअसल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली है। कारों के सबसे बड़े बाजार बनने की तरफ बढ़ रहे भारत में इस दीपावली वाले समय में भी कारें उतनी नहीं बिक सकीं। कई कंपनियों ने तो अपनी कारों का उत्पादन ही घटा दिया। सितंबर महीने में देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति के पास 5 हफ्ते से ज्यादा की इनवेंट्री थी। वो भी तब जब मारुति ने जून में आठ दिनों के लिए प्लांट बंद कर दिया था। इसका मतलब ये हुआ कि अगर मारुति उत्पादन बंद भी कर दे तो पांच हफ्ते की कारें उसके गोदामों या फिर डीलरों के शोरूम पर खड़ीं थीं। दीपावली भी मारुति का खास भला नहीं कर सकी और इनवेंट्री घटकर चार हफ्ते की रह गई। पिछले साल अक्टूबर में मारुति ने 96002 कारें बेचीं थीं। मारुति इस साल की दीपावली में सिर्फ 60 कारें ही ज्यादा बेच सकी। ये आंकड़े साफ बताते हैं कि लोगों के पास कारें खरीदने के लिए रकम ही नहीं बची है। जबकि, दीपावली पर कंपनियों ने जमकर तोहफे बांटे, छूट दी। शेयर बाजार भी पिछले तीन साल से वहीं का वहीं है। मतलब लोगों के लिए कमाई बढ़ाने के साधन कम हुए हैं। लेकिन, महंगाई तो कम होने का कोई इशारा भी नहीं कर रही है।

उद्योग संगठन एसचैम का ताजा सर्वे हमारी चिंता और बढ़ाता है। सर्वे में सामने आया है कि बढ़ती महंगाई, महंगे ईंधन और शिक्षा-स्वास्थ्य पर बढ़ते खर्च की वजह से मिडिल क्लास भारतीय परिवारों की कमाई गायब हो रही है। और इस महंगाई की वजह से मिडिल क्लास भारतीय परिवार की बचत पिछले तीन सालों में चालीस प्रतिशत से ज्यादा घटी है। ये आंकड़ा स्तब्ध कर देने वाला है। मतलब ये कि अगर महीने में किसी परिवार में दस हजार बचते थे तो अब वो छे हजार रुपये ही बचा पा रहा है। इसे आगे जाएं तो किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए भारतीय परिवारों के पास रकम तीन साल पहले की करीब आधी ही बच रही है। जनवरी से मार्च 2013 के बीच कराए गए इस सर्वे में ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि वो किसी तरह अपने खर्चे घटाने और कमाई बढ़ाने के उपाय खोज रहे हैं। सर्वे में शामिल हर चौथा व्यक्ति बेहतर नौकरी तलाश रहा है। यहां तक कि एक साथ दो नौकरियां और ओवरटाइम करके अपने खर्चे पूरे करने की कोशिश में लगा है। सबसे बड़ी बात कि मनमोहिनी अर्थव्यवस्था का सपना बुरी तरह से ध्वस्त हो रहा है। मेट्रो शहरो में रहने वाले 82 प्रतिशत लोग कह रहे हैं कि उनका जीवन स्तर कम से कम पचीस प्रतिशत गिरा है। और ये कहानी देश के उन शहरों की है जो तरक्की, जीवन स्तर के मामले में भारत का चेहरा हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, अहमदाबाद, हैदराबाद, पुणे, चंडीगढ़ और देहरादून जैसे शहरों में सर्वे में भारत की तरक्की की ये तस्वीर दिखी है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम समय समय पर ये कहते रहते हैं कि वित्तीय घाटा घट रहा है। शेयर बाजार में विदेशी निवेशक फिर आ रहे हैं। करीब चार लाख करोड़ की बुनियादी परियोजनाओं को मंजूरी दे दी गई है। सब कुछ पटरी पर आ रहा है। लेकिन, वित्त मंत्री जी ये सब सरकार के लिए दुनिया में अपनी रेटिंग बचाने के लिए जरूरी होगा। इन आंकड़ों के बावजूद यूबीएस ने भारत की रेटिंग गिरा दी। और हम तो मिडिल क्लास इंडियन फेमिली हैं जिसने मनमोहन सरकार के उदारीकरण के सपने को उड़ने की ताकत दी थी। हमारी जेब खाली हो रही है। जरूरी खर्च इतना महंगा हो गया है कि उसे करने के लिए पैसे नहीं हैं। सरकार कुछ करो ये महंगाई हमारी बचत भी खा रही है। अब अगर 2008 दोबारा हुआ तो किसकी बचत के सहारे दुनिया में सिर उठाके घूम पाओगे।

Friday, November 22, 2013

इस तेजपाल का ‘तेज’ पूरी तरह खत्म होना जरूरी है

#Tehelka वाले Tarun #Tejpal याद हैं ना। अरे वही जो खोजी पत्रकार हैं। एक लड़की खोजा उसे खोजी पत्रकार बनाया। गलत व्यवहार किया। लड़की ने मामला उठाया तो बड़े संपादक होने का अहसास जागा। 6 महीने के लिए इस्तीफा देकर महान बनने का रास्ता खोजना चाहा लेकिन, मीडिया के दूसरे गैरखोजी पत्रकारों की नजर उस पर पड़ गई। टीवी की ब्रेंकिंग तेजपाल बन गए हैं। और मुझे लगता है कि यही टीवी की ताकत है। नंगा नंगा दिखता है। और इस मामले में तरुण तेजपाल जैसों का नंगापन इसलिए भी दिखना सामने आना ज्यादा जरूरी है कि इन जैसे लोगों की वजह से जाने अनजाने ऐसे कर्म न करने वाले भी धीरे-धीरे इसे स्वीकार करने लगते हैं। और ये फिर समाज की ऐसी स्वाभाविक प्रवृत्ति के रूप में नजर आने लगता है जहां नैतिकता शब्दकोष में से मिटा देना ही ठीक लगने लगता है। इतना तो वैसे भी समाज में मान्य हो चला है कि अगर दो वयस्क एक दूसरे से सहमत होकर शारीरिक संबंध बनाते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। फिर वो चाहे आधी से भी कम उम्र की बेटी समान लड़की ही क्यों न हो। अब सोचिए कि जिस लड़की के साथ तरुण तेजपाल जैसे पत्रकार ने जबर्दस्ती शारीरिक संबंध बनाए।पैदा होने के साथ वो लड़की #Tarun Tejpal को पिता की तरह देखती रही तेजपाल उसके पिता का दोस्त था। समझदार हुई तो आदर्श पत्रकार का सम्मान देती रही। इसी आदर्श में संभवत:  उसने तहलका पत्रिका में काम शुरू किया होगा।

सबसे बड़ा सवाल तो अब यही है कि #Tehelka या #Tarun Tejpal कैसे किसी महिला के खिलाफ अत्याचार पर निष्पक्ष रिपोर्ट दे सकते हैं। या पहले जो भी रिपोर्ट उनके संपादकत्व में छपी हैं वो कितनी निष्पक्ष रही हैं। जिंदा रहे सोशल मीडिया कि उसके दबाव में टीवी अखबार में भी ये खबर आई। और टीवी न्यूज चैनलों पर संपादकों ने इस खबर को प्राइम टाइम में अच्छे से बहस का मुद्दा भी बनाया। लेकिन, एक बात जो चैनलों के काफी संपादकों के मुंह से बुरी लग रही थी कि वो बार-बार तरुण तेजपाल के इस बलात्कारी कृत्य पर चर्चा से पहले तेजपाल की महानता की किस्सागोई करने लग रहे थे। महान खोजी पत्रकार बताने से ही हर कोई शुरुआत कर रहा था। कुछ स्वनामधन्य संपादक टाइप के पत्रकार तो इसी में संतुष्ट हो जाना चाह रहे थे कि तरुण तेजपाल को गलती का अहसास हुआ और उन्होंने छे महीने की संपादकी छोड़कर प्रायश्चित करने का फैसला भी तो खुद ले लिया। इससे डर लगता है कि ऐसा न हो टीवी में नैतिकता शब्दकोष से गायब कर चुके संपादकों की फौज तरुण के इस कृत्य को फिल्मों का चीनी कम जैसा कृत्य समझकर निशब्द हो जाए। टीवी संपादकों के लिए ये बड़ी परीक्षा का समय है। जिस नैतिकता और पत्रकारीय, सामाजिक मर्यादा का हवाला देकर उन्होंने आसाराम के मामले को उठाया था। उससे जरा सा भी कम रहे तो जनता उन्हें गाली तो देगी ही बचा खुचा भरोसा भी टूटेगा। तेजपाल को कानून कब पकड़ेगा ये सवाल टीवी स्क्रीन पर दिखना जरूरी है। टीवी संपादक जी लोग संज्ञान में लें तो उनके लिए बेहतर। चलाएं कि तेजपाल पर मुकदमा दर्ज क्यों नहीं कर रही पुलिस। चलाएं कि आखिर क्यों तेजपाल है अब तक जेल से बाहर। फोन पर, लाइव बैठाकर- पुलिस, मंत्री, संबंधित अधिकारियों से सवाल पूछें। 8-10 खिड़कियों में मेहमान बैठाकर धुआंधार बहस करें तब तक जब तक ये तरुण तेजपाल जेल के भीतर न चला जाए। और इस तेजपाल से सहानुभूति रखकर इसे महान न बनाएं। इस लिंक को जरूर पढ़िए जिसमें उन दोनोंवाकयों की पूरी कहानी है। इसी लिंक में से मैं कुछ जरूरी लाइनें यहां भी चिपका रहा हूं। जो इसलिए भी जरूरी है कि जो मिडिल क्लास तरुण तेजपाल जैसे चरित्रों को महान समझकर अपनी सारी जिंदगी गुजार देता है उसकी मूल भावनाओं की ऐसी तैसी कैसे हर रोज ये करते रहते हैं। "Think" सेमिनार था तहलका का। गोवा के ग्रैंड हयात होटल में जिसमें इस तथाकथित महान खोजी पत्रकारिता करने वाली पत्रिका बात कर रही थी बड़े-बड़े लोगों को बुलाकर। वहीं ये सब हुआ।

(पीड़ित लड़की)I said “It’s all wrong. I work for you and Shoma.” He said first “It’s alright to be in love with more than one person,” and then he said, “Well, this is the easiest way for you to keep your job.” I was walking still faster, blinking back tears.

This was the first time the two of us had really met since the incident of the previous night. Since I had moved to Mumbai about a year and a half ago, Tiya had grown to become one of my closest friends. She lives across the road from my house in Mumbai and barely a day had passed when the two of us did not meet or talk to each other constantly. She was sitting beside me, and Mr De Niro was absorbed in conversation with his daughter. I could not keep something of this magnitude from her. I told her she would hate me for what I was telling her – but that Mr Tejpal had tried to molest me on these two separate occasions. I said “He tried to shove his tongue down my throat and then took my panties off”, when Tiya replied saying “I saw him do this to a woman when I was thirteen, so it doesn’t surprise me anymore,” but she was clearly disgusted.


देशज कहावत है डायन भी 7 घर छोड़ती है #Tehelka वाले Tarun #Tejpal तो बेटी की दोस्त को भी नहीं छोड़े । इसलिए इस तेजपाल को छोड़ना ठीक नहीं होगा।

Tuesday, November 19, 2013

सचिन ने मुझे पर्सनली थैंक्यू बोला है!

Twitter पर सचिन ने यही निजी संदेश भेजा
सचिन तेंदुलकर बड़े महान खिलाड़ी हैं। भारत रत्न जिन पैमानों पर नेताओं को मिलता रहा है। उस लिहाज से सचिन ने कम भारत के रत्न होने का काम नहीं किया है। अच्छा है उनको भी मिल गया। लेकिन,जरा ध्यान से सोचा जाए तो ये किस सचिन को भारत रत्न मिला है। वो जो मुंबई की ओर से खेलते खेलते देश का और दुनिया का महान क्रिकेटर बन गया। सरल स्वभाव का है। विवादों में नहीं पड़ता। परिवार, दोस्तों का प्रिय है। देश जिसे सिर आंखों पर बिठाए रखता है। सच्चाई ये नहीं है। सच्चाई ये है कि ये घोर टेलीविजन की चमक वाले युग में सबसे बड़े विज्ञापन ब्रांड बने और अभी भी बाजार के सबसे ज्यादा कमाऊ ब्रांड सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिला है। सचिन के भारत रत्न मिलने पर मुझे कोई एतराज नहीं है। लेकिन, ये कमाऊ ब्रांड तेंदुलकर को भारत रत्न मिला है ये मैं क्यों कह रहा हूं समझाता हूं। कल अचानक मेरे मोबाइल पर ट्विटर अकाउंट खोलते ही ऊपर एक संदेश आया जिसमें लिखा था @BCCI #ThankYouSachin के साथ संदेश भेजने पर सचिन की तरफ से निजी संदेश वाली तस्वीर भेजने की बात थी। मैंने ये देखने के लिए कि ये क्या है। 

@BCCI #ThankYouSachin आप भारत रत्न हैं राजनीति से बचिएगा श्रेष्ठता बनी रहे। ये संदेश भेज दिया। तुरंत मेरे लिए सचिन रमेश तेंदुलकर का निजी थैंक्यू आ गया। अंग्रेजी में लिखा है Thank you for your wishes। मेरा नाम मशीन का सॉफ्टवेयर नहीं लिख पाया होगा इसलिए मेरे नाम की जगह सचिन के इस निजी संदेश में कई प्रश्नवाचक चिन्ह हैं। ये प्रश्नवाचक चिन्ह इसीलिए भारत रत्न पर भी लग रहे हैं। और मैंने कोई बधाई संदेश नहीं भेजा था मैंने तो सचिन को सलाह दी थी कि आप भारत रत्न हैं राजनीति से बचिएगा श्रेष्ठता बनी रहे। सचिन को उस सलाह को गंभीरता से लेना चाहिए था जवाब उसका आना चाहिए था कि वो राजनीति में आएंगे या उससे बचेंगे। लेकिन, चूंकि ये कमाऊ ब्रांड सचिन तेंदुलकर को भेजा संदेश था इसलिए जवाब भी उसी ने दिया। इसीलिए भारत रत्न बंद कर दिया जाए ये सवाल उठना स्वाभाविक है।

Monday, November 18, 2013

21000 पर फिसलता बाजार और यूपीए की सरकार




एक नवंबर को दीपावली की शुभकामनाएं देने के बहाने वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पत्रकार वार्ता बुलाई। पत्रकार वार्ता में दीपावली की शुभकामना के बहाने वित्त मंत्री देश को ये बताने आए थे कि देश की अर्थव्यवस्था के हालात काफी बेहतर हुए हैं। काफी हद तक वित्त मंत्री पी चिदंबरम की बात सही भी थे। पुख्ता आंकड़े थे उनके पास अर्थव्यवस्था की हालत सुधरने की बात साबित करने के लिए। चालू खाते का घाटा काबू में आता दिख रहा है। देश की अर्थव्यवस्था जिन अहम उद्योंगों पर टिकी हुई है उस कोर सेक्टर की ग्रोथ बेहतर हुई है। निवेशकों का भरोसा बना हुआ है। मतलब विदेशी निवेशक एफआईआई और एफडीआई दोनों ही तरीकों से भारत में निवेश कर रहे हैं। अप्रैल से अगस्त तक एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के जरिए 13 बिलियन डॉलर से ज्यादा देश में आ चुका है। एफआईआई के जरिए भारतीय शेयर बाजार में अच्छी खासी रकम आ चुकी है। जनवरी से अक्टूबर महीने तक एफआईआई यानी विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय बाजार में नब्बे हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम लगाई है। सिर्फ सितंबर और अक्टूबर महीने की बात करें तो सितंबर में तेरह हजार करोड़ रुपये और अक्टूबर में साढ़े पंद्रह हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का विदेशी निवेश भारतीय शेयर बाजार में आया है। विदेशी निवेश की इस ताकत ने ही सेंसेक्स को एक बार फिर से तीन साल के बाद इक्कीस हजार के ऊपर पहुंचा दिया था। इसके अलावा भारत सरकार की एक और बड़ी चुनौती भी काफी हद तक काबू में दिख रही है। चालू खाते का घाटा इस साल 60 बिलियन डॉलर रहने की उम्मीद वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जताई है। पिछले साल चालू खाते का घाटा 88 बिलियन डॉलर था। इसके अलावा वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ये भी बताया कि साढ़े तीन लाख करोड़ से ज्यादा के प्रोजेक्ट की बाधाएँ दूर की जा चुकी हैं।

शुभ दीपावली बोलने आए वित्त मंत्री हालांकि, किसी भी आर्थिक अशुभ की खबर पर चर्चा नहीं करना चाहते थे लेकिन, सारे मजबूत आंकड़ों को पेश करते उनके मुंह से एक जरूरी बात निकली जो समझनी बेहद जरूरी है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने मुस्कुराते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था के हालात बेहतर हुए हैं और आगे बेहतर ही होंगे। लेकिन, उन्होंने निवेशकों को शेयर बाजार में ज्यादा उत्साह में निवेश करने से बचने की सलाह दी। इस सलाह के मायने समझना जरूरी है। वित्त मंत्री ने अपनी आगे की जो प्राथमिकताएं गिनाईं वो इस सलाह की वजह साफ कर देती हैं। चिदंबरम साहब ने कहा कि रुपया स्थिर हुआ है लेकिन, उसे और स्थिर करना, शेयर बाजार में स्थिरता और महंगाई घटाना प्राथमिकता होगी। उन्होंने जोड़ा कि ये प्राथमिकताएं पूरी हुईं तो सरकार और फैसले ले सकेगी। अब ये समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर इन प्राथमिकताओं के पूरा होने और फैसले लेने की बात चिदंबरम साहब को क्यों कहनी पड़ी। दरअसल इन्हीं प्राथमिकताओं में ही सारी बात छिपी हुई है। पिछले एक महीने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के स्थिर भाव और डॉलर के मुकाबले रुपये के करीब 62 के आसपास के स्थिर भाव से देश में पेट्रोल की कीमतें तेल मार्केटिंग कंपनियां महीने भर में पांच रुपये लीटर से ज्यादा सस्ता कर चुकी हैं। लेकिन, ये बात कब तक बनी रहेगी ये अंदाजा लगाना मुश्किल है। क्योंकि, अब सर्दियां शुरू हो चुकी हैं। और अमेरिका, यूरोप में गैसोलीन की खपत तेजी से बढ़ जाएगी और उस वजह से कच्चे तेल की मांग भी। अकसर कई सालों से ये भी ट्रेंड रहा है कि दीपावली के ठीक पहले के दो तीन महीने एफआईआई यानी विदेशी निवेशक जमकर रकम लगाते हैं और शेयर बाजार के अहम सूचकांक सेंसेक्स को इक्कीस हजार के जादुई आंकड़े तक पहुंचा देते हैं और भारतीय रिटेल निवेशकों में ये भरोसा जग जाता है कि फिर से बाजार 2008 के पहले वाला बाजार हो गया है वो आते हैं निवेश करते हैं और फंस जाते हैं। क्योंकि, जब वो अपनी गाढ़ी बचत की कमाई शेयर बाजार में लगा रहे होते हैं तो धीरे-धीरे कब एफआईआई अपने निवेश पर काम भर का मुनाफा कमाकर निकल जाते हैं पता ही नहीं लगता। दीपावली पर रोज के पेट्रोल की कम हुई महंगाई राहत देती है लेकिन, दूसरी महंगाई अभी भी भारतीयों को जमकर परेशान कर रही है। इसीलिए वित्त मंत्री की आगे की प्राथमिकता में महंगाई को काबू में करना सबसे आगे हैं।

बीती मॉनिटरी पॉलिसी का असर दिखना शुरू हो चुका है। रघुराम राजन के रेपो रेट बढ़ाने के असर से देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और देश के सबसे बड़े होम लोन देने वाले बैंक एचडीएफसी ने करीब दशमलव दो प्रतिशत बेस रेट बढ़ाकर उसे दस प्रतिशत कर दिया है। मतलब बैंकिंग के नेताजी लोग इशारा दे चुके हैं पीछे-पीछे छोटे-बड़े बैंक भी यही करेंगे और महीने की तय तारीख पर किस दिन से आपकी बढ़ी ईएमआई कटेगी इसका बस इंतजार भर करिए। ये महंगाई तो महीने में एक दिन मारेगी। लेकिन, हर रोज प्याज, टमाटर और आलू का बढ़ा भाव आपके खाने का स्वाद पहले से ही कड़वा कर रहा है।
और एक शेयर बाजार से दीपावली की मुहूर्त ट्रेडिंग के दिन अच्छी खबर आई जब छे साल बाद सेंसेक्स ने इक्कीस हजार के ऊपर रिकॉर्ड स्तर पर बंद होने में कामयाबी पाई। 8 जनवरी 2008 वो तारीख है जिस दिन सेंसेक्स ने 21000 के जादुई आंकड़े को पार किया था। हालांकि, उस दिन भी सेंसेक्स बंद हुआ तो इक्कीस हजार के आंकड़े को बरकरार रखने में कामयाब नहीं हो पाया। और 5 नवंबर 2010 को पहली बार सेंसेक्स इक्कीस हजार के जादुई आंकड़े के ऊपर बंद होने में कामयाब हो पाया। लेकिन, उस तारीख से अगले तीन सालों तक सेंसेक्स 21000 के आंकड़े के ऊपर बंद नहीं हो सका। 30 अक्टूबर 2013 को सेंसेक्स 21000 के ऊपर बंद हुआ। और इक्कीस हजार का ये जादुई आंकड़ा इस दीपावली की मुहूर्त ट्रेडिंग के दिन सारे पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त करने में कामयाब रहा और सेंसेक्स 21,239 अंकों की रिकॉर्ड ऊंचाई पर बंद होने में कामयाब रहा। जाहिर शेयर बाजार, सरकार और निवेशकों के लिए ये बड़ी खुशी की खबर है। लेकिन, फिर से वो तारीख याद करें जिस दिन सेंसेक्स इक्कीस हजार के पार पहुंचा था तो सारी खुशी हवा हो जाती है। क्योंकि, करीब छे साल बाद भी शेयर बाजार उसी जगह खड़ा है यानी इक्कीस हजार पर। जबकि, इन छे सालों में महंगाई करीब सत्तर प्रतिशत बढ़ी है। इसका सीधा सा मतलब हुआ कि जो भी शेयर बाजार में बना हुआ है या ऐसे उछाल वाले मौकों पर शेयर बाजार में कूदता है वो पूरी तरह से घाटे में है। मतलब साफ है सेंसेक्स का इक्कीस हजार पर होना भ्रम है। मनमोहिनी अर्थव्यवस्था मनमोहन सिंह के ही काबू में नहीं दिख रही है। सरकार के सुधार के फैसलों पर विदेशी निवेशक यकीन करने करने को तैयार नहीं हैं। वॉलमार्ट की कोई दुकान दस लाख से ज्यादा की आबादी वाले शहरों को तो छोड़िए दिल्ली मुंबई के बाजार में भी फिलहाल नहीं दिखने वाली। और सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि शेयर बाजार की इस तेजी के पीछे एक बड़ी वजह ये भरोसा माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार आने वाली है। यानी सरकार के फैसलों का कम ही योगदान शेयर बाजार की तेजी में है। इसलिए वित्त मंत्री पी चिदंबरम की सलाह मैं दोहराना चाहूंगा कि रिटेल निवेशक इस समय शेयर बाजार में ज्यादा उत्साह दिखाने से बचें। बाजार में निवेश के मौके अभी फिर आएंगे। 21000 के बाजार और यूपीए की सरकार के रिश्ते अभी बने हुए हैं। दीपावली के तुरंत बाद सेंसेक्स ने अपनी सारी कमाई खो दी है। सेंसेक्स लगातार संघर्ष कर रहा है 21000 पर बने रहने के लिए।

Friday, November 08, 2013

देश में मोदी की मजबूती दिल्ली में अरविंद को कमजोर करेगी


अन्ना आंदोलन के दौरान इंडिया गेट पर एक पोस्टर
टाइम्स नाऊ और सी वोटर का ताजा ओपिनियन पोल कह रहा है कि दिल्ली में कांग्रेस-बीजेपी में कड़ा मुकाबला है। साथ ही इसमें ये भी बात सामने आ रही है कि अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी बड़ी ताकत बनकर आ रही है। इस सर्वे में बीजेपी को 25, कांग्रेस को 24 और AAP को 18 सीटें मिल रही हैं। मतलब साफ है कि दिल्ली विधानसभा में किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने वाला। और आप दिल्ली के लोगों को पसंद आ रही है। काफी हद तक ये ओपिनियन पोल सही दिखता है। सच्चाई यही है कि दिल्ली को अरविंद केजरीवाल अपील करते हैं। अरविंद केजरीवाल मुझे निजी तौर पर बहुत लुभाते थे। 13 दिन के अन्ना आंदोलन के दौरान, पार्टी बनाने के बाद भी। सच कहें तो अभी भी बहुत लुभाते हैं। और मेरा ये साफ मानना है कि इस तरह की राजनीति से निकले आदमी को जिंदा रहना चाहिए। लेकिन, पुराने अनुभव ये भी बताते हैं कि अचानक भरी हवा से फूले गुब्बारे की तरह जो राजनीति में आया। वो गायब भी वैसे ही हुआ। एक आंदोलन जिसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ सामूहिक आस्था बसी थी उसके आधार पर भ्रष्टाचार की लड़ाई के सबसे बड़े चेहरे अन्ना हजारे को किनारे करके अगर अरविंद इतनी जल्दी सत्ता में आते हैं तो शायद ये ठीक नहीं होगा। छात्र राजनीति में भी इतनी तेजी से राजनीतिक उबाल से सत्ता पाने वालों का हश्र देश देख चुका है। असम गण परिषद देश में कितने लोगों को याद होगा पता नहीं। इसी तरह एक झटके में अपने-अपने विचारों को तिलांजलि देकर एक जनता पार्टी बनाकर इंदिरा की तानाशाही से लड़ने का भी हश्र देश देख चुका है। इसलिए जरूरी है कि अरविंद केजरीवाल राजनीति करें और अच्छे से राजनीति करके राजनीति अच्छी करने का माध्यम बनें।

ये सब मैं इसलिए भी कह रहा हूं कि थोड़े समय के लिए सारे मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट आसानी से चलते हैं। लेकिन, जैसे किसी की जिंदगी मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट से नहीं चल सकते। वैसे ही पार्टियों की भी। इसलिए जरूरी है कि अरविंद इस राजनीतिक व्यवस्था को लंबे समय में कैसे बदल सकते हैं ये दिखे। अभी अरविंद की पार्टी में अरविंद को छोड़कर कोई नहीं है। शाजिया इल्मी, मनीष सिसोदिया टाइप लोग अभी कितने नेता बन पाए हैं ये बताने समझाने की जरूरत नहीं है। लेकिन, अब जरा समझिए कि मैं क्यों कह रहा है कि अभी थोड़ी लंबी राजनीतिक पारी के बाद इन्हें सत्ता मिले। अरविंद की पार्टी में योगेंद्र यादव हैं। बाकायदा पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं। वैसे योगेंद्र यादव की पहचान राजनीतिक सर्वे और उस सर्वे के अच्छे समीक्षक होने की वजह से हैं। लेकिन, राजनीतिक पार्टी में शामिल होने के बाद जाहिर है कि योगेंद्र यादव का सर्वे निष्पक्ष कैसे होगा। उसी सर्वे के आधार पर अरविंद सुबह से शाम तक दिल्ली के एफएम रेडियो पर ये बताते रहते हैं कि 70 में से 47 सीटें आप को मिल रही हैं। एफएम रेडियो पर ही एक और विज्ञापन आता है। अरविंद केजरीवाल रेडियो पर जब कहते हैं कि फूल वाला मुझे मिला और उसने बताया कि उसकी दुकान से फूल लेने वाले 10 में से 8 #AAP को वोट देंगे। तब पता नहीं क्यों मुझे चिढ़ होती है कि ये आदमी किस तरह से फूल वाले के नाम पर FOOL बनाने की कोशिश कर रहा है। अब ये बताइए कि ये कौन सा फूल वाला है। और किसी फूल वाले की दुकान पर 60 दिनों के चुनाव को भी मान लें तो कितने लोग फूल लेने आ पाएंगे। रोज 30 लोग भी फूल लेने आते हों तो 1800 लोग ही हुए। उसमें भी सारे ये बताएंगे कि वो किस पार्टी को वोट देंगे या फिर फूल लेकर निकल लेंगे।

अरविंद केजरीवाल की आदर्श अपील बहुत ज्यादा है। लेकिन, एक बात जो समझना जरूरी है कि आप पार्टी के पास अभी भी दिल्ली में बीजेपी-कांग्रेस जैसा संगठन और पक्का वाला वोट बैंक नहीं है। पंजाबी, बनिया, पूर्वांचली किसे वोट करेगा आप को? मुझे संदेह है। दिल्ली वैसे भी Elite है। मतलब देश के सबसे ज्यादा कमाई वाले यहीं हैं। मेरा आशय प्रति व्यक्ति आय से है। दिल्ली सुविधाभोगी भी है। दो साइज बड़ी शर्ट पहनकर अरविंद दिल्ली के झुग्गी-ऑटोवालों को लुभा रहे हैं इसमें कोई बहस नहीं। लेकिन, क्या वो दिल्ली के उस वर्ग को चिढ़ाते नहीं हैं जो असल दिल्ली है। या उनको जो असल दिल्ली बनना चाहते हैं। दिल्ली आकर कोई भी फटेहाल नहीं रहना चाहता। इसीलिए शीला दीक्षित के - कमाई ज्यादा है इसलिए महंगाई भी ज्यादा जैसे अटपटे- बयानों के बाद भी दिल्ली शीला को पसंद करती है। एक और बात कि दिल्ली में शीला से नाराज लोग (सही ये लिखना होगा कि केंद्र की कांग्रेस सरकार से नाराज) अरविंद को पसंद कर रहे थे सच है। लेकिन, सच ये है कि उनको विजय गोयल का चेहरा भी बहुत पसंद नहीं आ रहा था। लेकिन, डॉक्टर हर्षवर्धन की जो छवि है वो दिल्ली को अच्छी लगती है।

और जो सबसे बड़ी बात है कि अगर देश में ही नरेंद्र मोदी की हवा निकल जाए तो बात अलग। वरना दिल्ली विधानसभा को दिल्ली लगे होने से देश के चुनाव का प्रतीक माना जाता है। और देश में मोदी को पसंद करने वाले दिल्ली में अरविंद के साथ चले जाएंगे ये होगा मुश्किल है। वजह साफ है उन्हें अरविंद पसंद हैं। लेकिन, उन्हें देश में मोदी चाहिए। इसलिए मुझे लगता है कि चुनाव आते आते वो लोग और साफ होंगे जो कांग्रेस के विरोध में देश में मोदी और दिल्ली विधानसभा में अरविंद केजरीवाल को पसंद कर रहे हैं। क्योंकि, उन्हें पता है कि दिल्ली विधानसभा में अरविंद के मजबूत होने का मतलब देश में मोदी के कमजोर होने से निकाला जाएगा। और ये स्थिति उन लोगों को नापसंद होगी जो कांग्रेस विरोध में हैं। जो नरेंद्र मोदी की सभा में दिल्ली के रोहिणी से लेकर दक्षिण तक जुट रहे हैं और तालियां बजा रहे हैं। ये ओपिनियन पोल काफी हद तक सही है। लेकिन, मुझे लगता है कि 15 नवंबर के बाद का ओपिनियन पोल तस्वीर नए सिरे से साफ करेगा।

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

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