Sunday, December 23, 2007

राष्ट्रीय राजनीति और नरेंद्र मोदी


नरेंद्र मोदी फिर से गुजरात के मुख्यमंत्री बन गए हैं। औपचारिक तौर पर मोदी 27 दिसंबर को शपथ ले लेंगे। अब मीडिया में बैठे लोग अलग-अलग तरीके से मोदी की जीत का विश्लेषण करने बैठ गए हैं। वो, अब बड़े कड़े मन से कांग्रेस को इस बात के लिए दोषी ठहरा रहे हैं कि कांग्रेस मोदी के खिलाफ लड़ाई ही नहीं लड़ पाई।

खैर, कोई माने या ना माने, गुजरात देश का पहला राज्य बन गया है जहां, विकास के नाम पर चुनाव लड़ा गया और जीता गया। विकास का एजेंडा ऐसा है कि गुजरात के उद्योगपति चिल्लाकर कहने लगते हैं कि कांग्रेस या फिर बीजेपी में खास फर्क नहीं है। फर्क तो नरेंद्र मोदी है। अब सवाल ये है कि क्या नरेंद्र मोदी विकास का ये एजेंडा लेकर राष्ट्रीय स्तर की राजनीति कर सकते हैं।

मेरी नरेंद्र मोदी से सीधी मुलाकात उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान हुई थी। पहली बार मोदी को सीधे सुनने का मौका भी मिला था। खुटहन विधानसभा में एक पार्क में हुई उस रैली में पांच हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ सुनने के लिए जुटी थी। खुटहन ऐसी विधानसभा है जहां, आज तक कमल नहीं खिल सका है। और, मोदी की जिस दिन वहां सभी उस दिन उसी विधानसभा में उत्तर प्रदेश के दो सबसे कद्दावर नेताओं, मुलायम सिंह यादव और मायावती की रैली थी। ये भीड़ उसके बाद जुटी थी।

मोदी ने भाषण के लिए आने से पहले विधानसभा का समीकरण जाना। और, मोदी के भाषण का कुछ ऐसा अंदाज था कि जनता तब तक नहीं हिली जब तक, मोदी का हेलीकॉप्टर गायब नहीं हो गया। मोदी ने कहा- देश के हृदय प्रदेश को राहु-केतु (मायावती-मुलायम) का ग्रहण लग गया है। मोदी ने फिर गुजरात की तरक्की का अपने मुंह से खूब बखान किया। और, उसके बाद वहां खड़े लोगों से सीधा रिश्ता जोड़ लिया। मोदी ने कहा- उत्तर प्रदेश के हर गांव-शहर से ढेरों नौजवान हमारे गुजरात में आकर नौकरी कर रहे हैं। लेकिन, मुझे अच्छा तब लगेगा जब किसी दिन कोई गुजराती नौजवान मुझसे आकर कहे कि उत्तर प्रदेश में मुझे अपनी काबिलियत के ज्यादा पैसे मिल रहे हैं। मैं अब गुजरात में नहीं रुके वाला।

साढ़े पांच करोड़ गुजरातियों के बूते सत्ता का स्वाद चखने वाला मोदी उत्तर प्रदेश के लोगों को गुजरात से ज्यादा तरक्की के सपने दिखा रहे था। मोदी ने फिर भावनात्मक दांव खेला। कहा- हमारे यहां गंगा मैया, जमुना मैया होतीं तो, क्या बात थी। हमारे यहां सूखा पड़ता है पानी की कमी रहती है लेकिन, एक नर्मदा मैया ने हमें इतना कुछ दिया है कि हमारा राज्य समृद्धि में सबसे आगे है।

लेकिन, मोदी इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने धीरे से एक जुमला सुनाया कि हमारे कांग्रेसी मुख्यमंत्री मित्र सम्मेलनों में मिलते हैं तो, उनसे मैं पूछता हूं कि सोनिया और राहुल बाबा के अलावा आप लोगों के पास देश को देने-बताने के लिए कुछ है क्या। उन्होंने कहा कि असम के कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने मुझसे कहा कि मैं बड़ा परेशान हूं। असम के लोगों को काम नहीं मिल रहा है। बांग्लादेशी लेबर 30 रुपए रोज में ही काम करने को तैयार हो जाते हैं और, उनकी घुसपैठ भी बढ़ती ही जा रही है। मोदी ने बड़े सलीके से घुसपैठ का मुद्दा विकास के साथ जोड़ दिया था।

उत्तर प्रदेश की खुटहन विधानसभा में मोदी का भाषण सुनने वाले गुजरात के विकास से गौरवान्वित होने लगे थे। मोदी ने कहा- मैंने कांग्रेसी मुख्यमंत्री से कहा आपकी थोड़ी सीमा बांग्लादेश से सटी है तो, आप परेशान हैं। गुजरात से पाकिस्तान से लगी है और मुझसे मुशर्रफ तो क्या पूरा पाकिस्तान परेशान है। जाने-अनजाने ही उत्तर प्रदेश के लोग विकास से गौरवान्वित हो रहे थे और पाकिस्तान, बांग्लादेश की घुसपैठ की समस्या उनकी चिंता में शामिल हो चुकी थी।

ये थी मोदी कि कॉरपोरेट पॉलीटिकल पैकिंग। जिसके आगे बड़े से बड़े ब्रांड स्ट्रैटेजी बनाने वालों को भी पानी भरना पड़ जाए। यही पैकिंग थी जो, ‘जीतेगा गुजरात’ नाम से आतंकवाद, अफजल, सोहराबुद्दीन के साथ विकास, गुजराती अस्मिता को एक साथ जोड़ देती है। ये बिका और जमकर बिका।

और, मोदी की इस कॉरपोरेट पैकिंग को और जोरदार बना दिया, मोदी के खिलाफ पहले से ही एजेंडा सेट करके गुजरात का चुनाव कवरेज करने गए पत्रकारों ने। ऐसे ही बड़े पत्रकारों ने मोदी को इतना बड़ा कर दिया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ये बयान देना पड़ा कि मोदी की प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारी मोदी के डर से की गई है। ज्यादातर बहस इस बात पर हो रही है कि मोदी आडवाणी के लिए खतरा हैं या नहीं। दरअसल इसमें बहस का एक पक्ष छूट जा रहा है कि क्या देश में लाल कृष्ण आडवाणी से बेहतर प्रधानमंत्री पद के लिए कोई दूसरा उम्मीदवार है। जहां तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बात है तो, ये जगजाहिर है कि वो कोई ऐसे नेता नहीं हैं जो, लड़कर चुनाव लड़कर देश की सबसे ऊंची गद्दी तक पहुंचे हों। मनमोहन जी को ये भी अच्छे से पता है कि सोनिया की आंख टेढ़ी हुई तो, गद्दी कभी भी सरक सकती है।

मैं भी गुजरात चुनाव के दौरान वहां कुछ दिनों के लिए था। दरअसल गुजरात में मोदी के खिलाफ कोई लड़ ही नहीं रहा था। नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे कुछ मीडिया हाउस। कुछ एनजीओ, जिनमें से ज्यादातर तीस्ता सीतलवाड़ एंड कंपनी के जैसे प्रायोजित और सिर्फ टीवी चैनलों पर दिखने की भूख वाले लगते थे या फिर नरेंद्र मोदी के बढ़ते कद से परेशान और फिर मोदी की ओर से परेशान किए गए बीजेपी के ही कुछ बागी।

मोदी जीत गए हैं। सबका उन्होंने आभार जताया। साठ परसेंट गुजरातियों ने वोट डाला। और, उसमें से भी बीजेपी को करीब पचास परसेंट वोट मिले हैं लेकिन, मोदी ने कहा ये साढ़े पांच करोड़ गुजरातियों की जीत है। मोदी ने हंसते हुए कहा कि नकारात्मकता को जनता ने नकार दिया है। गुजरात के साथ मोदी फिर जीत गए हैं। केशुभाई और मनमोहन सिंह की बधाई स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि चुनाव खत्म, चुनावी बातें खत्म। अब मोदी गुजरात के राज्य बनने के पचास साल पूरे होने पर राज्य को स्वर्णिम बनाने में जुटना चाहते हैं।

नरेंद्र मोदी के अलावा बीजेपी में एक और नेता था जो, हिंदुत्व, विकास की कुछ इसी तरह पैकेजिंग कर सकता था। लेकिन, उनकी समस्या ये है कि वो, उमा भारती का भी बीड़ा उठाए रखते हैं। और, उमा भारती को लगता है रामायण, महाभारत की कथा सुनाकर और हर किसी से जोर-जोर से बात करके बीजेपी कार्यकर्ताओं का नेता बना जा सकता है। उमा भारती ने भी दिग्विजय के खिलाफ लड़ाई लड़कर उन्हें सत्ता से बाहर किया। लेकिन, बड़बोली उमा खुद को संभाल नहीं पाईं और खुद मुख्यमंत्री होते हुए भी दिल्ली में बैठे बीजेपी नेताओं से लड़ती रहीं। बहाना ये कि दिल्ली में बैठे नेता उनके खिलाफ राजनीति कर रहे हैं।

मोदी कभी भी राज्य के किसी नेता के खिलाफ शिकायत लेकर दिल्ली नहीं गए। राज्य बीजेपी के नाराज दिग्गज नेता दिल्ली का चक्कर लगाते रहे, मोदी के खिलाफ लड़ते रहे और मोदी गुजरातियों के लिए लड़ाई लड़ने की बात गुजरातियों तक पहुंचाने में सफल हो गए। कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी बीजेपी की दूसरी पांत के सभी नेताओं से बड़े हो गए हैं। लेकिन, आडवाणी के कद के बराबर पहुंचने के लिए अभी भी मोदी को बहुत कुछ करना होगा।

मुझे नहीं लगता कि नरेंद्र मोदी जैसे आगे की रणनीति बनाने वाले नेता के लिए पांच-सात साल का इंतजार करना ज्यादा मुश्किल होगा। लाल कृष्ण आडवाणी 80 साल के हो गए हैं। और, मोदी सिर्फ 57 साल के हैं। बूढ़े नेताओं पर ही हमेशा भरोसा करने वाले भारतीय गणतंत्र के लिए मोदी जवान नेताओं में शामिल हैं। और, आडवाणी बीजेपी को सत्ता में लौटा पाएं या नहीं, दोनों ही स्थितियों में 2014 में आडवाणी रेस से अटल बिहारी की ही तरह बाहर हो जाएंगे। साफ है 2014 के लिए बीजेपी के सबसे बड़े नेता की मोदी की दावेदारी अभी से पक्की हो गई है।

7 comments:

  1. मोदी ने - जैसा आपने कहा - मीडिया के एक अति दम्भी हिस्से और तीस्ता सीतलवाद जैसों का अहं तोड़ा है। और यह लोग अभियान केवल चुनाव प्रचार के समय नहीं - पांच साल से अधिक से हाई पिच पर कर रहे थे।

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  2. मोदी ने संस्थाओ और सिस्टम को तोड़कर, पार्टी और संगठन को दो कौड़ी का बनाकर यह जीत हासिल की है। देश में लोकतंत्र के विकास के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है। और इतिहास गवाह है कि विकास की गाड़ी लोकतंत्र के बिना लूट की गाड़ी बन जाया करती है।

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  3. ऐसा काहे लिखते हैं ? कम्युनिस्ट लोग परेशान हो जाते है . मोदी की हार हो जाती तो चार छः सांसद वाले गुजरात मे विकास की नदी नही समुद्र का इन्तजाम करते . रूस चीन से उधार ली गई विचारधारा से गुजरात को
    पाकिस्तान बनाने का सपना पुरा न होने का दुःख है . हिंदुत्व अपने आप मे लोकतंत्र की प्रचुरता रखता है .
    सही मायने मे एक स्वस्थ समाज की जीत दर्ज की है गुजरात ने .२०१४ की भविस्यवानी मे हम भी कुछ जोड़ने
    जा रहे है ;- कि गुजरात मे अब कभी दंगा नही होगा . आगामी चुनाव मे मुस्लिम वोट मोदी को मिलेगा .
    भुवन भास्कर भाई अपने भदेस भारत ब्लॉग पर काफ़ी कुछ आपसे सहमति बनाए दिखे . पहले वहाँ पहुचना
    जरूरी था. विकास जिन्दाबाद ! हिंदुत्व जिन्दावाद ! स्वस्थ जनमत जिन्दावाद !!

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    1. Very Right. Communist to Bengal ki Khari me Vikas le jate hai.

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  4. अनिल जी की चिंता बहुत सही है। संगठन और संस्थाओं को दो कौड़ी का बनाकर जीत हासिल करना सच में लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है। लेकिन ताज़्जुब है कि ये चिंता कभी लालू यादव, मुलायम यादव, जयललिता, करुणानिधि जैसे क्षत्रपों की जीत पर नहीं जताई गई, जिन्होंने संगठन को हमेशा अपनी रखैल की तरह इस्तेमाल किया है।

    फिर देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी के बारे में क्या कहेंगे? सोनिया जी की पार्टी में संगठन और कार्यकर्ताओं की प्रतिष्ठा के बारे में सभी को पता है। रही बात मोदी की, तो पूरी मीडिया ने ये तो बताया है कि गुजरात में मोदी संगठन को पी गए हैं, लेकिन इसका एक भी उदाहरण आज तक सामने नहीं रखा है। चुनाव में हमने तमाम टीवी चैनलों में जब कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया सुनी तो किसी ने भी 'सोनिया, राहुल वंदन' की तर्ज़ पर मोदी का वंदन नहीं किया। सबका यही कहना था कि मोदी भाजपा के कार्यकर्ता हैं। और ये बयान किसी राजनाथ या आडवाणी के नहीं, बल्कि सामान्य भाजपा कार्यकर्ताओं की थी। आपमें से किसी ने मोदी वंदन सुना हो तो कृपया मुझे भी बताए।
    यहां ये कहना भी मुझे ज़रूरी लगता है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की आलोचना इसीलिए की जाती थी कि उनका अपना व्यक्तित्व कुछ था ही नहीं, पार्टी के नेता ही सरकार पर अपनी-अपनी तरह से हावी थे। ऐसे में आप राजनीति भले ही कर लें, एक कुशल प्रशासन तो नहीं दे सकते।

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  5. नरेंद्र मोदी जीत तो गए है लेकिन उनकी जीत से स्वकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं, विचारकों एवं पत्रकारों की रातों की नींद उड गई है. यह वास्तविकता पचाने में उन्हें काफी कठीनाई हो रही है. आज तक इन लोगों का दावा था, कि हिंदुत्व और विकास एकसाथ नहीं चल सकता. मोदी ने उन तमाम दावों को झूठला दिया है.

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  6. Modi is a amn who know to balance within Party & Development. Most of us are factory of criticism. We have lot of things for opposing any body. We always feel happy to critisize a man who going to do anything for sociery. But never come along to make him strong and participate in the work with an eye for non corrupt man power involvement. Come forward with an honest will to produce something great.

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