Monday, November 26, 2007

महाराष्ट्र में ‘माया’ फैल रही है

हाथी की दहाड़ अब उत्तर प्रदेश के बाहर भी सुनाई देने लगी है। लोकसभा चुनाव के लिए मायावती पूरी तरह तैयार नजर आ रही हैं। उनके प्रमुख सिपहसालार सतीश चंद्र मिश्रा लोकसभा चुनाव के लिए 7-8 राज्यों में हाथी को दौड़ाने की रणनीति बनाने में लग गए हैं। मुंबई के छत्रपति शवाजी पार्क में हुई रैली उसी योजना का एक रिहर्सल थी। मायावती को भले ही महाराष्ट्र के नेता ये कहकर नकार रहे हों कि ये उत्तर प्रदेश नहीं लेकिन, मायावती की रैली में उमड़ी भीड़ ये साफ मान रही है कि दलितों को एक राष्ट्रीय नेता मिल गया है। और, ये दलित नेता ऐसी है जिसकी रणनीति में ब्राह्मण और पिछड़ी जातियों में दबा कुचला तबका सत्ता की सीढ़ी की तरह काम करने को तैयार दिख रहा है।

मायावती जिन राज्यों में बसपा का समीकरण काम करते देख रही हैं उनमें महाराष्ट्र सबसे ऊपर है। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद महाराष्ट्र में हुई पहली बड़ी रैली ने साफ कर दिया है कि रामदास अठावले को अब अपना ठिकाना बचाने के लिए कुछ और जुगत करनी पड़ेगी। RPI के ज्यादातर कार्यकर्ता मानते हैं कि अठावले दलितों का सम्मान बचाने में कामयाब नहीं रहे हैं। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की कर्मभूमि होने की वजह से मायावती के लिए यहां दलितों को अपने पाले में खींचने में ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। राज्य के 35 जिलों में बसपा की जिला समितियां काम करने लगी हैं। दलितों की 11 प्रतिशत आबादी मायावती की राह आसान कर रही है। महाराष्ट्र विधानसभा में नीले झंडे का प्रवेश होता साफ दिख रहा है।

मायावती अब एक परिपक्व राजनेता की तरह बोलती हैं। शिवाजी पार्क में उन्होंने किसी पार्टी, जाति के लिए अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया। दलितों को वो समझा रही थीं कि दूसरी जातियों को अपने साथ लो और सत्ता का सुख भोगो। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का गारंटी कार्ड सतीश मिश्रा यहां भी मैडम के बगल में ही था। मायावती सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय का नारा दे रही थीं।

मायावती ने कहा- झुग्गियां नहीं चलेंगी लेकिन, अगर उनकी सरकार आई तो, बिना घर दिए किसी की झुग्गी नहीं टूटेगी। विदर्भ से मायावती की रैली में अच्छी भीड़ आई थी। किसानों की आत्महत्या पर उन्होंने राज्य सरकार को लताड़ा। कहा- मेरे राज्य में कोई किसान आत्महत्या नहीं करता।

मायावती सबसे पहले मुंबई में पैठ जमाना चाहती हैं। उन्हें पता है कि यहां से पूरे राज्य में संदेश जाता है। मायावती जानती हैं कि उत्तर प्रदेश के लोगों को उनके जादू का सबसे ज्यादा अंदाजा है। इसलिए वो उत्तर प्रदेश से आए करीब 25 लाख लोगों को सबसे पहले पकड़ना चाहती हैं। यही वो वोटबैंक है जिसने पिछले चुनाव में शिवसेना-भाजपा से किनारा करके कांग्रेस-एनसीपी को सत्ता में ला दिया। मुंबई में हिंदी भाषी जनता करीब 20 विधानसभा सीटों पर किसी को भी जितान-हराने की स्थिति में है। जाति के लिहाज से ब्राह्मण-दलित-मल्लाह-पासी-वाल्मीकि और मुस्लिम मायावती को आसानी से पकड़ में आते दिख रहे हैं।

अब अगर मायावती का ये फॉर्मूला काम करता है तो, रामदास अठावले की RPI गायब हो जाएगी। और, सबसे बड़ी मुश्किल में फंसेगा कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन। कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में कांग्रेस के साथ बड़ी संख्या में हिंदी भाषी हैं साथ ही दलित-मसलमानों का भी एक बड़ा तबका कांग्रेस से जुड़ा हुआ है। एनसीपी की OBC जातियों में अच्छी घुसपैठ है। साफ है, हाथी महाराष्ट्र में घुस चुका है लेकिन, ये जंगली हाथी नहीं है जो, पागल होकर किसी भी रास्ते पर जाकर उसे उजाड़ दे। ये मायावती के नए सामाजिक समीकरण को समझने वाले गणेशजी के प्रतीक हैं। सब इनकी पूजा कर रहे हैं। अब ये देखना है कि मायावती के आदर्श डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की दीक्षाभूमि में हाथी का कैसा स्वागत होता है।

5 comments:

  1. दलित राजनीति का उभार तो समय की सच्चाई है और ये भारतीय समाज के लिए कई मायनों में बहुत अच्छा है। ख़तरा केवल तब पैदा होता है जब कोई कथित दलित नेता इस समाज में अपनी पैठ बनाने के लिए घृणा को आधार बनाता है। अगर मायावती अपनी राजनीति को उत्तर प्रदेश के दायरे से निकालकर पूरे देश में फैलाना चाहती हैं, तो ये बहुत खुशी की बात है, क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति करने वाले राजनेता किसी भी मुद्दे पर बहुत संकीर्ण नज़रिया अपनाने का ख़तरा नहीं उठा सकते।

    ReplyDelete
  2. हर्षवर्धन भाई, बहिनी जी अब हमरे छत्‍तीसगढ में भी अपना पैठ बना रही हैं मिसिर जी अगले महीने आने वाले हैं । चलो बढिया है नारी शक्ति का उदगम दलित खेमें से इस पर हमारे बुजुर्ग तो काफी आश्‍वस्‍थ नजर आते हैं काफी दूर तक चलने की बात कहते हैं किन्‍तु राजनीति दर्शन नहीं है इस कारण हम विश्‍वास नहीं करते पर माया का मायाजाल है छायेगा जरूर ।

    आरंभ
    जूनियर कांउसिल

    ReplyDelete
  3. माया के विस्तार को देखना रोचक होगा। इसके रसायन शास्त्र में जो समीकरण है - वह अभी बैलेंस्ड नहीं लगती। पर जैसे जैसे विस्तार होगा; बदलाव होगा/हो रहा है।

    ReplyDelete
  4. सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखी कहै मुनि नाथ !
    हानि-लाभ जीवन- मरण यश अपयश विधि हाथ !!
    -रामचरित्रमानस

    ReplyDelete
  5. अच्छा विश्लेषण है. और जैसा आपने अपने लेख मे लिखा है सब सत्य है और वैसे ही घटित हुआ तो ये एक अच्छी शुरुआत कही जा सकती है. पर ऐसी अच्छी शुरुवात तो बहुत से नेताओं ने दिखाई थी पर.............

    ReplyDelete

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...